अयोध्या सप्तहरयः वर्तते पुण्यराशयः। गुप्तहरि चक्रहरि स्तथा विष्णुहरिः प्रिये ।। 1 ।।
धर्महरि बिल्वहरि स्तथा पुण्यहरि शुभ:। तस्मांश्चंद्रहरे पूजा कर्तव्या च विचक्षणैः।। 2 ।।
ज्येष्ठेमासि सितेपक्षे पञ्चदश्यामः विशेषताः । तस्य सांवत्सरी यात्रा दिव्यैश्चन्द्रहरे स्मृताः ।। 3 ।।
श्री अयोध्या यात्रान्तर्गत सप्तहरि भी है। उनके नाम गुप्तहरि, चक्रहरि, विष्णुहरि, धर्महरि, पुण्यहरि, तथा चंद्रहरि है। स्वर्गद्वार पर चंद्रहरि जी का दर्शन पूजन यात्रियों को अवश्य करना चाहिए। इसके पास ही श्री नागेश्वरनाथ महादेव का मंदिर है।
स्वर्गद्वारे नरः स्नात्वा दृष्टवा नागेश्वरं शिवम् ।
पूजयित्वा च विधिवत संर्वान् कामानवाप्नुयात् ।। 1।।
यात्रियों को प्रथम स्वर्गद्वार तीर्थ में स्नान कर, श्री नागेश्वरनाथ महादेव जी का दर्शन कर, यथाविधि उनका पूजन करना चाहिए। इससे सकल मनोरथों की सिद्धि प्राप्त होती है।
अयोध्यानगरे रम्ये रत्न मंडपमध्यगम् । ध्यायेतकल्पतरोर्मूले रत्नसिंहासन शुभमं ।। 1 ।।
तस्योपरि समसीनेजानकीसहितं हारीम् । विरासने समासीनं धनुर्बाणधर प्रभुम् ।। 2 ।।
एवं ध्यात्वा नरो धीमान सीतारामं प्रपूजयेत । प्रणम्य दण्डवद्भूमौ सर्वान कामानवाप्नुयात् ।। 3 ।।
श्री अयोध्यापुरी में परम रम्य रत्नों के मंडप के बीच कल्पवृक्ष की छाया में शोभायमान रत्नसिंहासन पर श्रीजानकी महारानी जी के सहित भगवान श्रीरामचंद्र वीरासन से विराजमान हैं और उनके पाष्र्व भाग में श्री लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न आदि छत्र चामर, व्यंजन (पंखा) हाथ में लिए खड़े है।
तमेवमुक्त्वा ककुत्स्थो हनुमन्तमथाब्रवीत् ।
जीविते कृतबुद्धिस्त्वं मा प्रतिज्ञां वृथा कृथाः।। 32 ।। वा.रा./उ./108 सर्ग
विभीषण से ऐसा कहकर श्रीरामचन्द्र जी हनुमान जी से बोले – तुमने दीर्घकाल तक जीवित रहने का निश्चय किया है। अपनी इस प्रतिज्ञा को व्यर्थ न करो।
हनुमंते कृत कार्ये देवैरपि सुदुष्टकरम् । उपकारं न पश्यामि टीवी प्र्त्युपकरिणः ।। 1 ।।
प्रिय मारुते ! देवताओं को भी करने में दुःसाध्य ऐसे कामों को करते हुए तुम हमारी सेवा में तत्पर रहो, ऐसे उपकारी का प्रत्युपकार ही क्यों करें ? इसलिए अब तुम –
अचलं हि अयोध्यायां राज्यं कुरु समाश्रितः । अत्रस्थितानां सिद्धानां सिद्धिदो भव सर्वदा ।। 1 ।।
यावत् चन्द्रश्च सूर्यश्च यावत्तिष्ठति मेदिनी । यावन्मम कथा लोके तावद्राज्मं करोतीसौ ।। 2 ।।
जब तक चंद्र सूर्य और पृथ्वी हैं तथा जब तक हमारे भजन कथा का जनता में प्रेम है तब तक यहाँ बैठकर अयोध्याजी का अचल राज्य कीजिये और यहाँ के रहने वाले सिद्धों को सिद्धि का मार्ग दिखाइए। यह कहकर श्रीरामचन्द्र जी ने श्रीहनुमान जी को गद्दी पर बैठाया। तभी से हनुमान जी अयोध्या में बैठे हैं।
मत्कथाः परचरिष्यन्ति यावल्लोके हरिश्वर ।
तावद् रमस्व सुप्रीतो मद्वाक्यमनुपालनम् ।। 33 ।। वा.रा./उ./108 सर्ग
हरिश्वर ! जब तक संसार में मेरी कथाओं का प्रचार रहे, तब तक तुम मेरी आज्ञा का पालन करते हुए प्रसन्न्तापूर्वक विचरते रहो।
एवमुक्तस्तु हनुमान राघवेण महात्मना ।
वाक्यं विज्ञापयामास परं हर्षमवाप च ।। 34 ।। वा.रा./उ./108 सर्ग महात्मा श्री रघुनाथ जी के ऐसा कहने पर हनुमान जी को बड़ा हर्ष हुआ।
जन्मस्थानाच्च भो देवि अग्निकोणं विराजते । सीताकूपइति मिख्यातं ज्ञानकूपमितिश्रुतम ।।1।।
जलपान कृतं येन तस्य कूपस्य पारवती । स ज्ञानवान भवेल्लोको विवुधानां गुरुर्यथा ।। 2।।
श्री शंकर जी पारवती से कहते हैं कि जन्मस्थान के अग्निकोण में सीताकूप नां का कुआँ है जिसका जल पान नित्य प्रति करने से मनुष्यों कि बुद्धि वृहस्पति के तुल्य होकर उनको अवश्य ही ब्रह्मविद्या का ज्ञान होता है।
तस्मादुत्तरदिगभागे स्थले चैव मनोहरम् । सीताया भवनं दिव्यं नाम्ना कनकमंडपम् ।। 1।।
पितृदत्तं तू यत्स्थानं कन्यावैवाहिकोत्सवे । यत्र वै जानकीदेवी सखीभिः परिवारिता ।। 2।।
तत्र गत्वा नरो धीमान पूजां चैव तु कारयेत। पूजननैव सर्वत्र सर्वकामानवाप्नुयात् ।। 3।।
श्री महाराज जनक ने कन्यादान के समय में श्रीहैंकि जी को सोने का महल भेंट किया था, यही वह स्थान है। यहाँ पर दर्शन पूजन करने से सकल कामनाएं सिद्ध होती हैं।
तस्मात्पूर्वदिशाभागे वीरस्य शुभशंसिनः । स्नान मत्तगजेन्द्रस्य वर्तेते नियतात्मनः ।।1।।
कोशलारक्षणे दक्षो, दुष्टताडनतत्परः । यस्य दर्शन नृणां विह्नलेशो न जायते ।। 2 ।।
श्री मत्तगजेन्द्र जी अयोध्यावासी सज्जनों का रक्षण करते हैं और दुष्टजनों की ताड़ना करते हैं। इनके दर्शनमात्र से ही सब विघ्न दूर हो जाते हैं।
अयोध्या मध्यभागे तु रम्यं पातकनाशकम् । सप्तसागविख्यातं सर्वकामार्थसिद्धिदम् ।। 1।।
यत्र स्नानेन मनुजः सर्वांकामानवाप्नुयात् । पौर्णिमास्यां समुद्रस्य स्नानघत्पुण्यमाप्नुयात् ।। 2।।
तत्पुण्यं पर्वणि स्नाते नरश्वाक्षमाप्नुयात् । तस्यादत्र विधानेन स्नातव्यं पुत्रकांक्षया ।। 3।।
आष्विने पौर्णिमास्यां तु स्नानमाचरेत् । एवं कुर्वन्नरोधिमान् पुत्रपौत्राभिवृद्ध्ये ।।4।।
श्री अयोध्यानगरी के मध्यभाग में रमणीय सप्तसागर नाम का कुंड है, जो सब इच्छित फलों को देने वाला है। हर एक पूर्णिमा को समुद्रस्नान करने से जो पुण्यफल प्राप्त होता है, वही फल इस कुण्ड में किसी भी दिन स्नान करने से होता है।
सूर्यकुण्डात्पश्चिमे तु दुर्गाकुण्डमनुत्तमम् । आद्या चाष्टभुजौ तत्र सर्व्वांछितदायिनी ।।1।।
सूर्यकुंड के पश्चिम दिशा में दुर्गाकुण्ड आदि शक्ति देवकली का स्थान है। यहाँ पर डार्हस्न पूजन करने से सब वांछित फल प्राप्त होते हैं।
घोषार्ककुन्डमपरं वैतरिण्यास्तु दक्षिणे । सूर्यकुण्डमितिख्यातम सर्वकामार्थसिद्धिदम् ।।1।।
वणी कुष्ठी दरिद्रो वा दुःखकांतोहि यो नरः । करोति विधिवत स्नानं सर्वरोगैः प्रमुच्यते ।। 2।।
भाद्र, पोषे तथा माघे शुक्लपक्ष्यां प्रयत्नतः । रविवारं विशेषेण कर्तव्यं स्नानमोदकात् ।।3।।
वैतरणी के दक्षिण दिशा में सूर्यकुण्ड नाम का तीर्थ है। यहाँ पर स्नान करने से फोड़ा, फुंसी तथा कुष्ठी, दरिद्रों, महादुखी सब रोगों से मुक्त होता है।
पापमोचनतीर्थातु पर्वतश्शरयुजले । सहस्रधारातीर्थे वै सर्वकिल्मिषनाशनम् ।।1।।
यस्मिन रामाज्ञया वीरो लक्ष्मणः परवीरहा । प्राणानुत्सृज्य योगेन यायौ शेषात्मतां पूरा ।। 2।।
अत्र स्नानेन दानेन श्रद्धया परयन्वितः । सर्वपापविशुद्धात्मा विष्णुलोकं ब्रजत्पूमान ।। 3।।
अत्र स्नाने नरो धीरो लक्ष्मणं शेषरुपिणम् । तीर्थे संपूज्य विधिवत विष्णुलोकं ब्रजेन्नरः।। 4।। पापमोचन तीर्थ से पूर्व दिशा में करीब ही श्री सरयूजल में सहस्त्रधारा तीर्थ है। यहाँ शेष के सहस्त्रफलों से अमृतस्रावी सहस्रधाराएं निकलती हैं। इसलिए इस स्थान को सहस्त्रधारा तीर्थ कहते हैं। इसी जगह श्रीरामचन्द्र जी की आज्ञा से महापराक्रमी लक्ष्मण जी ने अपने योगबल से प्राणों का विसर्जन करके शेषरूप धारण किया था। यहाँ पर सद्बुद्धि से स्न्नान दान शेषरूपी लक्षमण जी का दर्शन पूजन करने वाले मनुष्य को विष्णुलोक में स्थान प्राप्त होता है। उसको नागदंश का भय नहीं होता।
तीर्थे तू पश्चिमभागे गोप्रतारेराभिथं महत् । विष्णुस्थानं च तत्रैव नाम्ना गुप्तहरिः स्मृतः ।। 1।।
यस्मिन् रामाज्ञया देवी साकेतनरौजनाः । जगाम स्वर्गतुलं निमज्य परमात्मसि ।। 2।।
गोप्रतारे नरो देवी यः स्नाति च सुनिश्चितः । सर्वपापविशुद्धात्मा विष्णुलोके महीयते ।। 3।।
श्री अयोध्या जी से पश्चिम भाग में गुप्तहरि गुप्तार घाट नाम का तीर्थ है। यः विष्णु का स्थान है। यहीं पर श्रीराम जी की आज्ञा से अयोध्या निवासी श्री सरयूजल में निमग्न हो गए थे। यहाँ पर स्नान, दर्शन, इत्यादि द्वारा सब पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में विष्णु लोक प्राप्त होता हैं।
ततः पश्चिमदिग्भागे निर्मलीकुण्डमुत्तमम् । यत्र वै तीर्थरजोअपि स्नातुमायाति नित्यशः ।। 1।।
अन्यानि यानि पापानि ब्रह्महत्या समानिच । तानि सर्वाणि नश्यन्ति निर्मलीकुण्डमज्जनात ।। 2।।
अयोध्या के पश्चिम दिशा में निर्मलकुण्ड नाम का तीर्थ श्री सरयूजल में है। यहाँ पर तीर्थराज प्रयाग नित्य प्रति स्नान करने आते हैं।
मखस्थानं महापुण्य यत्र पुण्या मनोरमा । यत्र राजा दशरथो पुत्रेष्टि कृतवान् पूरा ।। 1।।
तेन पुण्यप्रभावेण जाता रामादयः सुताः । चैत्रस्य पूर्णिमायां तू यात्रा सांवत्सरी स्मृताः ।।2।।
यह स्थान श्रीसरयू जी के दूसरे किनारे पर स्थित है। यहाँ मनोरमा नदी तथा सरयू संगम है और श्रीराम जी का मंदिर भी है। यहीं पर राजा दशरथ जी ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ किया था।
तस्मात पूर्वदिशाभागे नाम्ना बिल्वहरिः स्मृतः । तत्र स्नात्वा नरो देवी मुच्यते च ऋणत्रयात ।। 1।।
शत्रुतो न भयं तस्य विलवतीर्थस्य दर्शनात । आमायां माधवमासि यात्रा सांवत्सरी भवेत् ।। 2।।
अयोध्या के पूर्व भाग में 16 किलोमीटर पर सरयूनदी के किनारे बिल्वहरि जी का स्थान है। यहाँ पर स्नान, दान करने से ऋण त्रय से मुक्ति होती है। और दर्शन करने से शत्रु का भय नहीं रहता है।
अयोध्या दक्षिणेभागे नन्दीग्रामो बरानने । नन्दीग्रामे वस्तपूर्व भरतोरघुवंशजः।।1।।
रामचन्द्रं हृदियायनिरमलात्मा जितेन्द्रिय । तत्र स्नानं तथा श्राद्धं सर्वमक्षयतां ब्रजेत ।। 2।।
मन्वन्तरसहस्णैस्तु कशीवासेन यत्फलं । तत्फलम सम्वाप्नोप्ति नन्दिग्रामस्य दर्शनात ।। 3।।
यह स्थान अयोध्या से दक्षिण में 18 किलोमीटर पर स्थित है। यहीं पर श्रीभरत जी ने रामचरण पादुका की स्थापना की थी और चौदह वर्ष निराहार रहे थे। जब रावण को मार कर श्रीरामचंद्र जी श्रीजानकी एवं लक्षण जी सहित समस्त लोगों के साथ अयोध्या लौटे तब सर्वप्रथम भरत जी की भेंट हुई थी।
जन्मस्थानतपस्चिमे तु कुण्ड पापप्रणाशनम । वसिष्ठस्य निवसास्तु सरून्घत्याक्ष पार्वती ।। 1।।
सर्वकामफलप्राप्तिजार्यते नात्र संशय । भाद्र मासे सिते पक्षे यात्रा सांवत्सरी भवेत् ।।2।।
जन्मस्थान के पश्चिम दिशा में वशिष्ठ कुण्ड नाम का एक कुण्ड है। यहाँ पर अरुन्धती सहित श्रीवशिष्ठ जी का निवास स्थान है।
तस्मात पुण्यहरिर्नाम पुण्यतीर्थ सरोग्रतः । तस्मिनकुण्डेनरःस्नात्वा सर्वान्कामनवाप्नुयात ।। 1।।
रविवारे विशेषेणं यात्रा तस्य विधीयते। स्नात्वा दत्वा च विधिवत पांडुरोगादि नश्यति ।।2।।
यह तीर्थ विल्वहरि जी के समीप पश्चिम दिशा में एक किलोमीटर पर है। इसको पुण्यहरि कहते हैं। यहाँ पर स्नान दान करने से पाण्डुरोगी रोग मुक्त होते हैं।
विद्याकुण्डातपश्चिमे च पर्वतो राजते प्रिये । जानक्याश्च विहाराय रामचन्द्रस्य चाज्ञया ।।1।।
गरुड़ेन समानीतः पर्वतो मणिसंज्ञकः । तस्य दर्शनमात्रेन करस्थात्सर्वसिद्धयः ।। 2।।
विद्याकुण्ड से पश्चिम मणिपर्वत नाम का एक पर्वत है। यह पर्वत श्रीजानकी जी के विहार के लिए, रामचन्द्र जी की आज्ञा से गरुड़ जी ले के आए थे। इस पर्वत के दर्शन से ही पूर्ण सम्पूर्ण सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
जन्मस्थानात्पूर्वभागे विद्याकुण्डस्य चोत्तमम । वशिष्टाद्रामचन्द्रस्य विद्या प्राप्ताश्तुर्दशाः ।। 1।।
सौराशैवाश्च गाणेशा वैष्णवाः शक्तिकास्तथा । सिद्धा भवन्ति मन्त्राश्च जपस्तत्रैव पार्वती ।। 2।।
जन्मस्थान के पूर्व दिशा में विद्याकुण्ड स्थान है। यहाँ पर श्री गुरु वशिष्ठ जी ने रामचंद्र जी को चतुर्दश विद्याएं व चौषठ कलाएं पढाई थी। यहाँ सौर, शैव, गणेश, वैष्णव, शाक्त, सभी मन्त्रों का जप करने की सिद्धि प्राप्त होती है।